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उ॒त त्वाम॑दिते मह्य॒हं दे॒व्युप॑ ब्रुवे । सु॒मृ॒ळी॒काम॒भिष्ट॑ये ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta tvām adite mahy ahaṁ devy upa bruve | sumṛḻīkām abhiṣṭaye ||

पद पाठ

उ॒त । त्वाम् । अ॒दि॒ते॒ । म॒हि॒ । अ॒हम् । दे॒वि॒ । उप॑ । ब्रु॒वे॒ । सु॒ऽमृ॒ळी॒काम् । अ॒भिष्ट॑ये ॥ ८.६७.१०

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:67» मन्त्र:10 | अष्टक:6» अध्याय:4» वर्ग:52» मन्त्र:5 | मण्डल:8» अनुवाक:7» मन्त्र:10


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - (आदित्याः देवाः) हे देव सभासदों ! (अद्भुतैनसः) आप सब निरपराध और निष्पाप हैं। हे देवो ! (अंहोः) हिंसक अपराधी और पापी जनों का (उरु+अस्ति) महाबन्धन और (अनागसः) निरपराधी जनों के लिये (रत्नम्) रमणीय श्रेय होता है ॥७॥
भावार्थभाषाः - सभासद् अपने सदाचार को वैसा बनावें कि वे कभी पाप और अपराध करते हुए न पाए जाएँ, क्योंकि हिंसक पापी जनों को महादण्ड और निरपराधी को श्रेय मिलता है ॥७॥
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे देवाः ! हे आदित्याः ! यूयम्। अद्भुतैनसः= अभूतापराधाः स्थ। किन्तु। अंहोः=हिंसाकर्तुर्जनस्य। उरु=महत्पापमस्ति यद्वा महद् बन्धनमस्ति। तथा अनागसः=निरपराधस्य। रत्नम्=रमणीयं श्रेयोऽस्ति ॥७॥